Wednesday, August 30, 2023

PATTABHISHEKA CELEBRATION 20-8-23

 ಜಗದ್ಗುರು ಡಾ ಸ್ವಸ್ತಿಶ್ರೀ ಚಾರುಕೀರ್ತಿ ಭಟ್ಟಾರಕ ಪಂಡಿತಾಚಾರ್ಯ ವರ್ಯ ಮಹಾ ಸ್ವಾಮೀಜಿ 24ನೇ ವರ್ಷದ ಪಟ್ಟಾಭಿಷೇಕ ವರ್ಧoತಿ ಉತ್ಸವ ಇಂದು ಬೆಳಿಗ್ಗೆ29.8.23ರಂದು ಮಂಗಳವಾರ 6.35ಕ್ಕೆ ಗುರುಗಳ ಬಸದಿ ಯಲ್ಲಿ ಜರುಗಿತು ಭಗವಾನ್ ಪಾರ್ಶ್ವ ನಾಥ ಸ್ವಾಮಿ ಗೆ ವಿಶೇಷ ಅಭಿಷೇಕ 24ತೀರ್ಥ o ಕರ ರ ಪೂಜೆ ಸರಸ್ವತಿ, ಪದ್ಮಾವತಿ ಪೂಜೆ ಮಹಾ ಮಂಗಲ ಆರತಿ 18ಬಸದಿ ಗಳ ಅರ್ಚಕರಿಂದಶ್ರೀ ಜಿನ ಗಂದೋದಕ ಪ್ರಸಾದ ಸ್ವೀಕರಿಸಿ ಸ್ವಾಮೀಜಿ ಆಶೀರ್ವಾದ ನೀಡಿ



ಧರ್ಮ ಸಂಸ್ಕೃತಿ ಸಮಾಜ ಸೇವೆ ಮಠ ಮಾನ್ಯ ಗಳು ಸಮಾಜ ಸಹಕಾರ ದಿಂದ ಭಕ್ತ ಜನರ ವಿಶ್ವಾಸ ಭಕ್ತಿ ಧರ್ಮ ವಾಸ್ಸಲ್ಯ ದಿಂದ ಪ್ರಗತಿ ಕಾಣುದು ಸಾಧ್ಯ
ಜಗತ್ತಿನಲ್ಲಿ ಪರಸ್ಪರ ಅಪ ನಂಬಿಕೆ ಉಸ್ಸಾಹ ದ ಕೊರತೆ ಯಿಂದ ದುಃಖ್ಖ ಪರಸ್ಪರ ಅರಿತು ಕೂಡಿ ಬಾಳಿದಾಗ ಧರ್ಮ ಜಾಗೃತಿ ಯ ಕಾರ್ಯ ದಲ್ಲಿ ತೊಡಗಿಸಿ ಕೊಂಡ ಸಜ್ಜನ ರು ಸುಖಶಾಂತಿ ನೆಮ್ಮದಿ ಪಡೆಯುವರು ಪೂರ್ವ ಆಚಾರ್ಯ ರ ದೀಕ್ಷಾ ಗುರು ಗಳ ಅನುಗ್ರಹ ದಿಂದ ಧರ್ಮ ಕಾರ್ಯ ದಲ್ಲಿ ಪ್ರಗತಿ ಸಾಧ್ಯ ವಾಗಿದೆ ಎಂದರು ಪ್ರಕೃತಿ ರಕ್ಷಣೆ ಧರ್ಮ ರಕ್ಷಣೆ ಆತ್ಮ ಕಲ್ಯಾಣ ದ ಮಾರ್ಗ ದಲ್ಲಿ ಮುನ್ನಡೆ ಯೋಣ ಎಂದು ನುಡಿದರು ಪಟ್ಣ ಶೆಟ್ಟಿ ಸುದೇಶ್ ಕುಮಾರ್, ದಿನೇಶ್ ಕುಮಾರ್, ಆದರ್ಶ್, ಬಸದಿ ಮುಕ್ತೇಸರರು, ಅಭಯ ಚಂದ್ರ ಜೈನ್, ಯಂ ಬಾಹುಬಲಿ ಪ್ರಸಾದ್ ಶಂಭವ್ ಕುಮಾರ್, ಶ್ರೀ ಮಠ ವ್ಯವ ಸ್ಥಾಪಕ ಸಂಜಯಂತ ಕುಮಾರ್ ಶೆಟ್ಟಿ ಉಪಸ್ಥಿತರಿದ್ದರು ಬಳಿಕ ಮಧ್ಯಾಹ್ನ 3ಗಂಟೆ ಗೆ ಮುನಿರಾಜ್ ರೆಂಜಾಳ ತಾಳ ಮದ್ದಳೆ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮ ದೀಪ ಬೆಳಗಿಸಿ ಚಾಲನೆ ನೀಡಿದರು ಉಮಾನಾಥ್ ಶೆಣೈ, ಕೃಷ್ಣ ರಾಜ ಹೆಗ್ಡೆ ಜತೆಗೆ ಇದ್ದರು ಪ್ರಭಾತ್ ಬಲ್ನಾಡ್ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮ ನಿರೂಪಿಸಿದರು
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RAKSHA BANDHANA STORY 2

 रक्षा-बंधन ‘ Story RAKSHA BANDHAN

700 मुनियों की रक्षा करने पर आधारित है। यह कहानी ही रक्षाबंधन के त्योहार का आधार है।
इस कथा के अनुसार हस्तिनापुर के राजा महापद्म ने अपने बड़े पुत्र पद्मराज को राजभार सौंप वैराग्य धारण किया। उनके साथ उनका छोटा पुत्र विष्णुकुमार भी अपने पिता के साथ अविनाशी मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग पर चल दिए। उधर उज्जयिनी नगरी के राजा श्रीवर्मा के मंत्री बलि नमुचि, बृहस्पति और प्रहलाद थे। चारों जैन धर्म के कट्टर विपक्षी थे।
एक बार यहां अकंपनाचार्य मुनि अपने 700 शिष्यों के साथ पधारे। नगर के बाहर उद्यान में वे ठहरे। आचार्य को जब ज्ञात हुआ कि राजा के चारों मंत्री अभिमानी है और जैन धर्म के विरोधी हैं। आचार्य ने शिष्यों को बुलाकर आज्ञा दी कि जब राजा और मंत्री यहां आएं तो मौन धारण करके ध्यानमग्न बैठे। इसके द्वेषवश विसंवाद नहीं होगा और विवाद उत्पन्न नहीं हो सकेगा।
गुरु की आज्ञा के पालन की हामी सभी ने भर दी। इस समय श्रुतसागर नामक मुनि मौजूद नहीं थे। इस कारण उन्हें इसका पता नहीं चला। जब राजा मंत्रियोंसहित वन में मुनि के दर्शनों को पधारे तो मुनि संघ मौन था। इसे देख एक मंत्री ने कहा देखिए राजा ये मुनि नहीं बोल रहे हैं क्योंकि इनमें किसी प्रकार की विद्या नहीं है। इसके बाद मंत्रियों ने मुनियों की घोर निंदा की।
इस समय श्रुतसागर मुनि नगर से लौट रहे थे। उन्होंने जब यह बात सुनी तो मंत्रियों से शास्त्रार्थ करने को कहा। शास्त्रार्थ में मंत्री बुरी तरह पराजित हुए और मुनि के तर्कों के आगे राजा नतमस्तक हो गए। मंत्री इसे अपमान समझ उस समय तो वहां से चले गए। इधर श्रुतसागर मुनि ने आकर गुरु को सारा वृत्तांत सुनाया तब आचार्य ने उन्हें जंगल में उसी स्थान पर जाकर तप करने को कहा जहां उन्होंने शास्त्रार्थ किया था ताकि संघ के अन्य लोगों पर उपसर्ग नहीं आए।
यह तो निश्चित था कि मंत्री अपमान से कुपित हो उपसर्ग करेंगे। ऐसा ही हुआ। ध्यानमग्न मुनि श्रुतसागर पर मंत्रियों ने मौका पाकर हमला किया। उन्होंने जैसे ही तलवार उठाई वनदेव ने आकर उन्हें जड़ कर दिया। जब इस बात की खबर राजा को लगी तो उन्होंने मंत्रियों को देश निकाला दे दिया। अब चारों मंत्री वहां से निकल हस्तिनापुर पहुंचे। उन्होंने वहां के राजा पद्मराय से नौकरी मांगी। राजा ने उन्हें योग्य पदों पर आसीन किया। बलि नामक मंत्री ने पद्मराय का विश्वास हासिल करने के लिए कूटनीति और छल से एक विद्रोही राजा को उसके अधीन करा दिया। अब क्या था पद्मराय ने खुश हो उससे वर मांगने को कहा।
उसने कहा- राजन् वक्त आने पर मांग लूंगा। कुछ समय पश्चात अकंपनाचार्य मुनि ससंघ हस्तिनापुर पधारे। राजा पद्मराय अनन्य जैन भक्त थे। बलि को जब इसकी जानकारी मिली तो उसके अंदर बदले की भावना बलवती हो गई। उसने राजा से अपना वर मांगा और कहा कि राजन् मुझे सात दिन के लिए राजा बना दीजिए। राजा ने उसे वर दे दिया और राजपाट देकर निश्चिंत हो महल में चले गए। इधर बलि ने अपनी चालें चलना शुरू की। उसने आचार्य सहित 700 मुनियों के संघ पर उपसर्ग करना प्रारभ किया, जिस स्थल पर मुनि संघ ठहरा था वहां चारों ओर कांटेदार बागड़ बंधवा कर उसे नरमेध यज्ञ का नाम दे वहां जानवरों के रोम, हड्डी, मांस, चमड़ा आदि होम में डालकर यज्ञ किया। इससे मुनियों को फैली दुर्गंध और दूषित वायु से परेशानी होने लगी। उन्होंने अन्न-जल त्याग कर समाधि ग्रहण की। मुनियों के गले रुंधने लगे, आंखों में पानी आने लगा और उनके लिए सांस लेना भी मुश्किल हो गया।
उनकी इस विपत्ति को देख नगरवासियों ने भी अन्न-जल त्याग दिया। उधर मिथिलापुर नगर के वन में विराजित सागरचंद्र नामक आचार्य ने अवधि ज्ञान से मुनियों पर हो रहे इस उपसर्ग को जान अपने शिष्य पुष्पदंत को कहा तुम आकाशगामी हो जाओ और धरणीभूषण पर्वत पर विष्णुकुमार मुनि से इस उपसर्ग को दूर करने का विनय करो वे विक्रिया ऋद्धि प्राप्त कर चुके हैं। क्षुल्लक पुष्पदंत गुरु की आज्ञा पाकर पर्वत पर पहुंचे और मुनियों की रक्षा का अनुरोध किया। विष्णुकुमार मुनि अविलंब हस्तिनापुर आए।
उन्होंने पद्मराय को धिक्कारा कि तुम्हारे राज्य में ऐसा अनर्थ क्यों हो रहा है तब राजा ने उन्हें पूरा वृत्तांत सुनाया जिसे जान मुनि 52 अंगुल का शरीर बना ब्राह्मण का वेश धारण कर बलि के पास गए। बलि ने उनका आदर-सत्कार किया और उनसे सेवा का मौका देने को कहा। इस पर ब्राह्मण वेशधारी मुनि ने उनसे तीन डग जमीन मांगी। मुनि ने अपनी ऋद्धि का प्रयोग करते हुए शरीर बड़ा किया और जमीन नापना शुरू किया। पहले डग में सुमेरू पर्वत और दूसरे को मानुषोत्तर पर्वत पर रखा।
जब तीसरे डग के लिए जमीन नहीं बची तो उन्होंने बलि से कहा अब क्या करूं तो बलि ने कहा अब मेरे पास जमीन तो नहीं है आप मेरी पीठ पर डग रख लीजिए। मुनि ने तीसरा डग बलि की पीठ पर रखा तो बलि कांपने लगा। देव व असुरों के आसन कंपायमान हो गए। सभी अवधि ज्ञान से वृत्तांत जान वहां आए और मुनि से क्षमा की प्रार्थना की। मुनि ने बलि की पीठ से चरण हटाया और असली रूप में प्रकट हुए। उसी समय बलि ने यज्ञ बंद कर मुनियों को उपसर्ग से दूर किया। राजा भी मुनि के दर्शनार्थ वहां पहुंच गए।
नगरवासी सभी श्रावकों ने मुनियों की वैयावृत्ति की उनकी सेवा की और मुनियों को चैतन्य अवस्था में लाए। मुनि पूर्णतः स्वस्थ हो आहार पर निकले तो श्रावकों ने खीर, सिवैया आदि मिष्ठान्न आहार हेतु बनाए थे। मुनियों को आहार करा श्रावकों ने भी खाना खाया और खुशियां मनाई।
यह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। इसी दिन मुनियों की रक्षा हुई थी। इस दिन को याद रखने के लिए लोगों ने हाथ में सूत के डोरे बांधे। तभी से यह रक्षाबंधन के पर्व के रूप में माना जाने लगा। इसके बाद विष्णुकुमार मुनि ने गुरु के पास जाकर अपने दोषों को बताया और महान तप किया। आज भी जैनियों के घरों में इस दिन खीर बनाई जाती है और विष्णुकुमार मुनि की पूजा तथा कथा के बाद रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है।
तमाम रिश्तों के मध्य एक रिश्ता भाई-बहन का बड़ा पवित्र रिश्ता है। यह रिश्ता बनाया नहीं जाता बल्कि बना हुआ आता है। बाकी सभी रिश्ते खानदान के होते हैं, मगर यही एक रिश्ता होता है जो खून का होता है और “खून” का रिश्ता “नाखून” जैसा होता है। नाखून को चाहकर भी चमड़ी से अलग नहीं किया जा सकता है। ठीक इसी तरह भाई बहन के प्यार को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है।
साल में एक बार रक्षा बंधन इसी प्यार को याद दिलाने के लिए आता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर धागे बांधती है और भाई उसके संकट के क्षणों में रक्षा के लिए संकल्पित होता है। बहन की कल्पना और भाई की संकल्पना, बस यही सौम्य पर्व है रक्षाबंधन।
रक्षा बंधन भाई-बहन के प्यार का त्योहार है। मां-बाप की खुशियों का इजहार है, भाई बहन के मिलने से होता पूरा परिवार है भाई बहन ही परिवार का आधार है।
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‘रक्षा-बंधन ‘

 

भगवान मुनिसुव्रत के समय की कहानी है | उज्जैनी नगरी में राजा श्रीवर्मा राज्य करते थे | उनके बलि,नामुचि, बृहस्पतिऔर प्रह्लाद आदि चार मंत्री थे | उनको धर्म पे श्रद्धा नहीं थी |

एक बार उस नगरी में 700 मुनियों के संघ सहितआचार्य श्री अकम्पन जी का आगमन हुआ | राजा भी उनके मंत्री के साथ गए |

राजा ने मुनि को वंदन किया, पर मुनि तो ध्यान में लीन मौन थे | राजा उनकी शांति को देखकर बहुत प्रभावित हुआ, पर मंत्री कहने लगे – ” महाराज ! इन जैन मुनियों को कोई ज्ञान नहीं है इसीलिए मौन रहने का ढोंग कर रहे हैं ” |

इसप्रकार निंदा करते हुए वापिस जा रहे थे और यह बात श्री श्रुतसागर जी नाम के मुनिश्री ने सुन ली , उन्हें मुनि संघ की निंदा सहन नहीं हुई | इसलिए उन्हों ने उन मंत्री के साथ वाद-विवाद किया | मुनिराज ने उन्हें चुप कर दिया |

राजा के सामने अपमान जानकार वह मंत्री रात में मुनि को मारने गए , पर जैसे ही उन्हों ने तलवार उठाई उनका हाथ खड़ा ही रह गया | सुबह सब लोगो ने देखा और राजा ने उन्हें राज्य से बाहर कर दिया ।

ये चार मंत्री हस्तिनापुर में गए | यहाँ पद्मराय राजा राज्य करते थे | उनके भाई मुनि थे – उनका नाम विष्णुकुमारथा |

सिंहरथ नाम का राजा , इस हस्तिनापुर के राजा का शत्रु था | पद्मराय राजा उसे जीत नहीं सकता था | अंतमे बलि मंत्री की युक्ति से उसे जीत लिया था | इसलिए राजा ने मुँह माँगा इनाम माँगने को कहा , पर मंत्री ने कहा जब आवश्यकता पड़ेगी तब माँग लूँगा |

इधर आचार्य श्रीअकम्पन जीआदि 700 मुनि भी विहार करते हुए हस्तिनापुर पहुँचे | उनको देखकर मंत्री ने उन्हें मार ने की योजना बनायीं | उन्हों राजा के पास वचन माँग लिया |

उन्हों ने कहा – “महाराज हमें यज्ञ करना है इसलिए आप हमें सात दिन के लिए राज्य सौप दें | राजा ने राज्य सौप दिया फिर मंत्रियो ने मुनिराज के चारो और पशु, हड्डी, मांस, चमड़ी के ढेर लगा दिए फिर आग लगा दी | मुनिवरो पर घोर उपसर्ग हुआ |

यह बात विष्णुकुमार मुनि को पता चली | वह हस्तिनापुर गए और एक ब्राह्मण पंडित का रूप धारण कर लिया और बलि राजा के सामने उत्तमोत्तम श्लोक बोलने लगे |

बलि राजा पंडित से बहुत खुश हुआ और इच्छित वर माँगने को कहा |विष्णुकुमार ने तीन पग जमीन माँगी |

विष्णुकुमार ने विराट रूप धारण किया और एक पग सुमेरु पर्वत पर रखा और दूसरा मानुषोतर पर्वत पर रखा और बलि राजा से कहा – “बोल अब तीसरा पग कहा रखूँ ? तीसरा पग रखने की जगह दे नहीं तो तेरे सिर पर रखकर तुझे पाताल में उतार दूँगा” | चारो और खलबली मचगयी|

देवो और मनुष्यों ने विष्णुकुमार मुनि को विक्रिया समेटने के लिए कहा | चारो मंत्रियो ने भी क्षमा माँगी |

श्री विष्णुकुमार मुनि ने अहिंसा पूर्वक धर्मं का स्वरूप समझाया | इसप्रकार विष्णुकुमार ने 700 मुनियों की रक्षा की |हजारो श्रावक ने 700 मुनियों की वैयावृति की और बलि आदि मंत्री ने मुनिराजो से क्षमा माँगी |

जिसदिन यह घटना घटी , उसदिन श्रावण सुदी पूर्णिमा थी | विष्णुकुमार ने 700 मुनियों का उपसर्ग दूर हुआ और उनकी रक्षा हुई , अतः वह दिन रक्षा पर्व के नाम से प्रसिद्ध हुआ | आज भी यह दिन रक्षाबंधन पर्व के नाम से मनाया जाता है |

वास्तव में कर्मो से न बंधकर स्वरूप की रक्षा करना ही


‘रक्षा-बंधन ‘ है


Story of Raksha Bandhan | Muni Vishnu Kumar Story | Kids Animated Storie...